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ग़ज़ल
नहीं किया जो अभी तक ,वो कर के देखते हैं
हरेक शय को हदों से, गुजर के देखते हैं
अकेले हैं तो चलो सज सँवर के देखते हैं
हम अपने आप को ही , आँख भर के देखते हैं
बहुत हँसीन है, देखा है , चाँद धरती से
लो आज उस की जमीं पर उतर के देखते हैं
भुला रखा है हमें जिस ने , इक ज़माने से
करेगा याद , उसे याद करके देखते हैं
कभी झुके , कभी उठ्ठे , खिले , मिले पिय से
कमाल ऐसे भी उन की , नजर के देखते हैं
जिधर भी देखो उधर , खौफनाक मंजर हैं
हरेक शख्स को हम, अब तो डर के देखते हैं
पलक झपकते ही , छूले जमीं का हर कोना
लगें हो पंख ही, जेसे खबर के देखते हैं
कृष्णा कुमारी 'कमसिन '
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