दीप नयनों के जलाए .......
रात भर पथ में तुम्हारे
दीप नयनों के जलाये
तुम को आना था ,न आये
नम है आँचल कि किनोरें
अश्रु बरसती है मेहंदी\
रह गए कंगन सुबकते
गीत पायल न गाये
तुम को आना था न ……।
हर दिशा की दृष्टि आतुर है
तुम्हारे ही परस को
सौम्य दर्शन को विह्वल -सी है
सजल शीतल हवा ये
तुम को आना था न .......
वेदना सह कर विरह की
पड़ गया है , व्योम काला
याद के अस्पुट सितारे
रह -रह झिलमिलाये
तुम को आना था न .......
चाँद भी सोने चला अब
भोर कि रक्तिम गुहा में
आस की मद्दम - सी लौ पर
ओस सी पड़ती ही जाये
तुम को आना था न …।
कृष्णा कुमारी