तुम्हें न आई याद हमारी
तिल-तिल उम्र गवाई सारी
तुम्हें न आई याद हमारी
सावन गरजा, भादो बरसा
होली में तन –मन भी तरसा
दीपाली पर स्नेह लुटाया
फिर भी मन मेरा ही तरसा
बाती बनाकर रात बिताई
.......तुम्हें न .....
बस्ती के हर चोराहे पर
तुम को कितनी बार पुकारा
हाथ थाम कर पथ पर चलना
क्या तुम को है नहीं गवारा
मैं तो इस जीवन से हारी
...तुम्हें न .....
मेरी अश्रु झड़ी के आगे
सावन भी तो हार गया
करुण-कणों का दान मांगने
वह सागर के द्वार गया
मन की धार लुटाई सारी...तुम्हें
न ....
लिए हाथ में विष का प्याला
पिया श्याम की मीरा बनकर
खड़ी हुई जन्मों से प्यासी
स्मृति की गागर ले पनघट पर
चिर वियोगिनी बनी तुम्हारी
तुम्हें न आई याद हमारी