Thursday 19 July 2012

मित्रों ,कुछ दिनों पहले पंजाबी भषा के विद्वान् श्री मान हरबंस जी का फ़ोन आया ,कहा कि अभी अभी आपकी कृति 'आओ नैनीताल चलें 'पद कर पूरी कि हे .दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले से खरीदी हे .ऐसा लग रहा हे कि मैं नैनीताल में ही हूँ .वहीँ घूम रहा हूँ . अब मैं नैनीताल जरुर जाऊंगा .आपने बहुत ही अच्छा ,स्वाभाविक वृतांत जिखा हे .आनंद आ गया .आपको बहुत .............बड़ाई .हम सब लेखकों के लिए ये प्रेरणात्मक उदगार हमारा होंसला बढ़ाते हें .ये हमारी पूंजी हे .ये ख़ुशी हम सबकी हे .आप भी इस में शामिल हें .......आभार ..............
इश्क का आगाज हे ,कुछ मत कहो
वो अभी नाराज हे कुछ मत कहो
बांध कर पर जिसने छोड़े हें परिन्द
वो कबूतर बज हे ,कुछ मत कहो
चीखती हे बे जुबाँ खामोशियाँ
... ये वही आवाज हे कुछ मत कहो

अब हे चिड़ियों का मुहाफिज राम ही
पहरे पे इक बज हे ,कुछ मत कहो

,कमसिन 'अपनी हे गजल जेसी भी हे
हम को इस पर नाज हे ,कुछ मत कहो
....यो हम क्या करें ...गजल संग्रह