Thursday 19 July 2012

इश्क का आगाज हे ,कुछ मत कहो
वो अभी नाराज हे कुछ मत कहो
बांध कर पर जिसने छोड़े हें परिन्द
वो कबूतर बज हे ,कुछ मत कहो
चीखती हे बे जुबाँ खामोशियाँ
... ये वही आवाज हे कुछ मत कहो

अब हे चिड़ियों का मुहाफिज राम ही
पहरे पे इक बज हे ,कुछ मत कहो

,कमसिन 'अपनी हे गजल जेसी भी हे
हम को इस पर नाज हे ,कुछ मत कहो
....यो हम क्या करें ...गजल संग्रह

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