चिंतन प्रकृति
–चिंतन
बारह मासों में सब से खूबसूरत ,पवित्र महीना .....सावन
....|जिधर देखिये हरियाली का साम्राज्य ........हरित वसुंधरा .... शीतल मंद पुरवाई ...झूलों का आनंद ..... बरखा बहार .... पर्वों
की भरमार ......गर्जन , नर्तन, गोठों, मेलों
व पिकनिक का आयोजन ..,.....कल –कल ..छल-छल.......रिमझिम .. रिमझिम ...झर-झर
झरते झरने ,.बारहमासो के गीतों का गायन.....;kuh सब कुछ परवान पर....आस्था
के तो कहने ही क्या ....हर दिन भजन कीर्तन....अभिषेक ....व्रत ...उपवास.... आरती
.... Ük`aगार .......पुण्य कमाने के लिए सर्वोÙkम महीना …सावन...| मगर इसी के साथ पर्यावरण
का ........? ........
परjUrq क्या कीजे ...आस्था से बड़ा तो ....? प्रति दिन हजारों की मात्रा में बील–पत्र भगवान शिव –शंकर
को चढ़ाये जाते हैं ....असंख्य फूल ......आंकड़े के पÙks ...धतूरा.... जलाभिषेक
......दूध - स्नान ......भगवान जी को खुश करने के लिए .... इस के कुछ दिनों
बाद जन्माष्टमी , फिर एकादशी ;kuh साल भर कोई न कोई उत्सव हमारे
यहाँ मनायk जातk हैं | शादी-समारोह हो या स्वागत-सत्कार या और कोई भी उत्त्सव ...सब में फूल –पÙkksa का यहाँ तक कि डालियों तक
का बहुतायत से उपयोग किया जाता है ..मगर
इस उत्सवधर्मिता के शोर में प्रकृति –पीM+k की कराह दब कर रह जाती है | ....जबकि इस का संरक्षण भी तो
पुण्य की ही श्रेणी में आता है |एक तरफ
बूंद –बूंद बचाओ ...का धुआंधार प्रचार ...और इधर जलाभिषेक,दूध स्नान दूसरी ओर......दूध
को तरसते गरीबों के मासूम बालक ...और......?पर्यावरण बचाओ के लिए विश्व –स्तर पर
..अनेकानक प्रयास ..किये जाते रहे हैं |मगर ..पूजा भी तो जरुरी है .बिलकुल जरुरी
है.....इसी से दुनिया में शांति कायम है|ये न हो तो आदमी .....आदमी न रहे......|
...क्योकि ईश्वर.प्रेम और भय से आदमी कई पाप कर्मों को करने से डरता है , मगर हमें
मिल कर , जरा सा ठहर कर गहन चिंतन –मनन करना चाहिए .....
.हम सदियों से चली आ रही
पूजन की पद्धतियों का अनुसरण कर रहे हैं |तब की बात और थी |उस समय पर्यावरण इतना
प्रदूषित नहीं था ,आबादी अत्यल्प थी, सघन वन हुआ करते थे |प्राकृतिक वैभव चरम पर
था|लेकिन आज की स्थिति एक दम भिन्न है| आज एक –एक पत्ती व फूल को बचाना जरुरी है|
पानी की एक-एक बूंद अनमोल है |और फिर अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी शिव -शंकर जी तो बड़े
भोले हैं |वो तो भाव से ही गदगद हो जाते हैं |शायद वो भी चाहेंगे की उन की रचना को
हानि नहीं पहुंचाई जाये |वो चाहेंगे कि उन के
चढ़ावे का दूध जरा सा उन पर च<+k कर शेष किसी गरीब के बालक
को पिला दिया जाये |
आज का युग तो वैसे ही हाईटेक का है, …..तो पूजा क्यों नहीं....? हम ऐसा कोई तरीका मिल कर
निकाल सकते हैं जिस से आस्था भी बनी रहे और प्रकृति का नुकसान भी न हो, जैसे इको –फ्रेंडली होना .... उदाहरण
के लिए फूल –पत्तियों की जगह फलों को काम ले सकते हैं |ताकि पूजन के बाद उन का सदुपयोग भी संभव है |और यदि ये भी नहीं तो
कम से कम जितने फूल – पत्ते तोड़े जाएँ उस से दुगुने उसी के पेड़ –पौधे लगा
दिए जाएँ याuh जितना लें उस ls जियादा सृजन कर लें |कहा भी जाता है कि किसी चीज का संरक्षण
करना भी सृजन के बराबर ही है | ऐसे और भी
कई विकल्प हो सकते हैं , बस इतनी सी ही बात है | संतुलन में कोई कमी नहीं आये |ये भी
कहा जाता रहा है कि फूल डाली पर ही सुन्दर
लगते हैं…… और फिर सावन तो प्रकृति का
उत्सव है , इस की गोद मैं बैठ कर आनंदित होने का पर्व है ,पेड़ –पौधे लगाने का
पुण्य महीना है ,क्योंकि ......पेड़ हमारे जीवन दाता,ये ही हमारे भाग्यविधाता ....|
हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों
में प्रकृति संरक्षण का उल्लेख है| वैदिक काल में एक फूल तोड़ने के लिए भी आज्ञा जी
जाती थी | कुरआन में भी लिखा है ...’सारी पत्तियां
,पेड़ ,पौधे ,दिल को राहत व सुकून पंहुचाते हैं और इंसानी अEनो –अमां के लिए जरुरी है |यह कुदरत का इंसान पर
बहुत बड़ा अहसान है, हमें खुदा का शुक्रिया अदा करना चाहिए|’ –कुरआन , तीसवां
पारा,-15
विज्ञान और अध्यात्म के
अनुसार दुनिया की हर वनस्पति औषधि है, इस से प्राणी जगत को अनंत उर्जा मिलती है |श्री
कृष्ण तो स्वयं पर्यावरण के उपासक रहे हैं
|गोवर्द्धन धारण इसी की पुष्टि करता है |गीता में वो स्वयं कहते हैं कि...
पीपल में मेरा निवास है |इसी संदर्भ
में एक और बात याद आ गई कि हमारे देश में कितने ही अवसरों पर
रात भर जागरण किये जाते है, ईश्वर की
आराधना में वो भी अत्यंत तेज ध्वनि के साथ|
बिलकुल जागरण किये जाने चाहिए| मगर
धीमी आवाज में भी तो संभव है |कहाor है कि ‘भोजन’ और ‘भजन’ एकांत में ही करना चाहिए| तनिक विचार कीजिये यदि पM+kSस में कोई बीमार है ...और वो तेज आवाज के कारण नींद नहीं ले
पाए तो.......किसी बच्चे की परीक्षा अगली सुबह हो तो ........किसी के सर में दर्द
हो तो ..... या कोई अन्य मजबूरी ....और फिर ईश्वर तो सर्वOयापी है .....वो तो धीमे सुर को भी सुन लेंगे |इसी
Hkkaति पूजन lkमग्री या केमिकल युक्त मूर्तियों का जल में
विसर्जन ....इस से जल तो प्रदूषित होता ही
है साथ मैं जलीय जीवों की हिंसा भी |
सावन तो एक माध्यम भर है अपनी बात कहने का , ऐसे कई- कई प्रसंग gSa जिन में प्रकृति का दोहन किया जाता है | करने
वाले तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फूलों की
तिजारत भी करते हैं ...यहाँ गजलकार
पुरुषोत्तम ‘यकीन’ dk fuEu शैर बहुत प्रासंगिक gSa ...
ÞQwy ftl us [+kjhns&csps gSa
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कुछ दिनों पूर्व समाचार –पात्र में पढ़ा था – एक प्रकृति - प्रेमी ने मंदिरों
में चदाये गए फूल – पत्तियों से अगरबत्ती का
बनाने का उद्योग प्रारंभ लिया दिया
,| इस से कई लोगों को रोजगार भी लिमा और प्रकृति के उपादानों का सदुपयोग भी |
वाह.... क्या कहने ..ये हुई ना बात
मैं सिर्फ इतना ही विनम्र
अनुरोध करना चाहती हूँ कि हमें ऐसी कई बातों पर मिल कर पुनर्विचार करना चाहिये
..ताकि आस्था भी बची रहे ....और प्रकृति भी ...|संभव है मेरा ये चिंतन –मनन आप को
मन -भावन नहीं लगे | मगर ये केवल मेरा अपना नजरिया है |गलत भी हो
सकता है ....मुझे क्षमा कर दीजियेगा, क्या करूँ मन की बात बिना कहे नहीं रह सकी
क्यों कि मुझे प्रकृति से असीम प्रेम है और आप को मुझ से भी जियादा है इसी लिए उदारता
पूर्वक विचार ज़रूर कीजयेगा ,प्लीज |
हाँ ,मैं स्वयं
इन बातों का अनुसरण करती हूँ ...जन्माष्टमी पर .झांकी फुलवारी में ही बना लेती हूँ |एक दम जीवंत .....|वैसे भी समय
के अनुसार बहुत कुछ परिवर्तन जरुरी हो जाता है |परिवर्तन ही तो सोंदर्य है ...|और
क्या कहूँ, आप सब मुझ से vf/kd समझदार gSa ....|बस हमारी अर्जी , आप की मर्जी |
“kkbj ^;d+hu* us vius ,d “kSj esa dgk gS -----------
“fn;k अपनी अदा जाने
हवा क्या है, हवा जाने”
कृष्णा कुमारी
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