Thursday 28 July 2016

यात्रा -वृतांत
अद्भुत देश है सिंगापुर

           बिल्कुल परीलोक की तरह खूबसूरत है सिंगापुर। जब इस देश की धरती पर कदम रखा एवं एक झलक देखी तो लगा कि अपनी परिकल्पनाओं, सपनों का साकार देश, यही है। जिधर भी दृष्टि जाती आकाश का स्पर्श करने को आतुर बहुमंजिली इमारतें और हरितिमा का साम्राज्य। काँचसी फिसलती सड़कों के दोनों ओर फुलवारी, पंक्तिबद्ध घनी वृक्षावलियाँ, धरती पर बिछी हरी मख़्मल की चादर भला किस का मन नहीं मोह लेगी। इसीलिए इसे ग्रीनसिटी कहते है। वैसे इसे हम सिटी ऑफ बिल्डिंग्सभी कह सकते हैं। दुनिया का सबसे ऊँचा 73 मंजिला होटल यहीं है। पहला नाइट सफारी यहीं है तो दक्षिणी पूर्व एशिया का सबसे बड़ा जुरोंग बर्ड पार्कभी यही है।
हम आगे का सफर तय करें उस के पहले यह बता दें कि हमें यहाँ जाने कैसे अवसर मिला। हाँ एयर इण्डिया एवं राजस्थान पत्रिका की ओर से आयोजित रेंक एण्ड बोल्ट प्रतियोगिता में राज्य स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले शिक्षक एवं छात्र को पुरस्कार स्वरुप सिंगापुर का भ्रमण करवाया गया जिस में भारत के 18 राज्यों के शिक्षक एवं छात्र सम्मिलित थे। इन में एक खुशनसीब हम भी है।
सर्वप्रथम तो हवार्इयात्रा का रोमांचक अनुभव, बादलों की सैर अपने आप में अप्रतिम अहसास है जो शब्दों से परे है। पक्षियों को नीलगगन में उड़ते समय कैसा लगता होगा, उस की कुछ अनुभूति हम कर रहें थे। अस्ली नहीं तो नक्ली पंखों से ही सही। नीचे बादल, समुद्र, जंगल, बस्तियाँ, वाह ! ....... क्या कहने ......! जहाज तो बच्चों के खिलौनों जैसे लग रहे थे। बीचबीच में छोटेछोटे आइलैंड भी पानी में तैरने का अहसास दिला रहे थे। लगभग 9,00 कि.मी. प्रति घण्टा की गति से उड़ते जहाज का आभास तक नहीं हो रहा था।
जैसे ही सिंगापुर उतरे तो एक बार विश्वास ही नहीं हुआ कि हम विदेश में हैं। क्योंकि फिल्हाल ऐसा सोचा ही नहीं था। बस परम आनन्द की स्थिति में थे। वहाँ वक्त लगभग ढार्इ घण्टे आगे चल रहा था, सो वक्त के साथ मिलना पड़ा, यानी घड़ीयाँ सेट कीं। चाँगी एयरपोर्ट, जो दुनिया का उत्कृष्ट पोर्ट है, वाकर्इ बेहद ख़ूबसूरत है। उतरते ही सिंगापुर एयर इण्डिया के मेजबानों ने पूरे दल का टूट कर स्वागत किया। फोटोग्राफ्स का सिलसिला तो मुम्बर्इ एयरपोर्ट से ही प्रारम्भ हो गया था, वापस चाँगी तक चलता रहा।
वहाँ से सागर के किनारेकिनारे चलतेचलते, सिंगापुर नदी को पार कर के होटल गोल्डन लैण्ड मार्कपहुँचे। जहाँ सब को ज्यूस से स्वागत कर के रुमकार्ड दिए, क्योंकि कार्ड से ही कमरे का ताला खोला जा सकता है। उस शाम प्रेसकान्फ्रेन्स हुर्इ, रात का भोजन, फिर मुश्तफा मोल का सरसरी अवलोकन। इस के पूर्व होटल के आसपास पैदलभ्रमण का लुत्फ उठाया।
आप विश्वास करेंगे, ........ चार दिनों में वहाँ हजारों कारों के चलते हार्न तक नहीं सुना। धूल का कण धूआँ, प्रदूषण का अस्तित्व ही नज़र नहीं आया। इतनी स्वच्छता कभी देखी नहीं थी। सारी गाड़ियाँ इतनी चमचमातीं कि आज ही खरीदी गर्इ हों। सारा ट्रेफिक अपनीअपनी सीमा में दौड़ता रहता है, स्वानुशासन का अन्दाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि कहीं पुलिस की वर्दी दिखार्इ नहीं दी। बस पुलिस स्टेशन ज़रुर नज़र आया जो पंचतारा होटल जैसा था।
वहाँ हम न्यू वाटर प्लाण्ट देखनें गए जहाँ गन्दे पानी को स्वच्छ किया जाता है जो W.H.O. द्वारा जाँच के बाद दुनिया का नम्बर वन शुद्ध पानी पाया गया है। एक से एक नर्इ तकनीकें यहाँ देखने को मिलीं। संसाधनों की कमी के बावजूद यहाँ के नागरिकों में कर्तव्यनिष्ठा, लगन, कठिन परिश्रम का ही परिणाम है कि अत्याधुनिक तकनीक में अग्रणी है सिंगापुर। साइन्स सेन्टर जहाँ सैंकड़ों तरह की टेक्नॉलाजी देखने को मिलीं। म्यूजियम देखने के बाद वहीं बहती सिंगापुर नदी में क्रूज का हम लोगों ने आनन्द लिया एवं सभी ने जम कर स्नेप्स लिए। नदी किनारे ही यहाँ का राष्ट्रीय प्रतीक श्वेत सिंग की भव्य प्रतिमा है, जिस के मुँह से फ़व्वारा निकल रहा था, जो यहाँ का मुख्य आकर्षण है। नदी के दूसरे छोर पर भव्य इमारतों की कतार देखते ही बनता था। कुल मिला कर यहाँ की एकएक इमारत ही नहीं ज़र्राज़र्रा दर्शनीय है।
रात को नाइट सफारी के तो कहने ही क्या। बिना बत्ती की ट्राम में सफर का आनन्द .........! वाह ...... ! अनेक प्रजातियों के सैंकड़ों जंगली जानवरों पंछियों की स्वाभाविक अठखेलियाँ देख कर हर्ष विभोर रह गए। उद्घोषक की आवाज़, उच्चारण एवं अन्दाज़ में चुम्बकीय आकर्षण था, बस ऐसा लगा कि यह आवाज़ हमेशा सुनते रहें। इस के बाद शो में कुछ जानवरों के करतब देखे जो अनूठा अनुभव था।
सिंगापुर मेनेजमेण्ट यूनीवर्सिटी में संगोष्ठी हुर्इ, जहाँ शिक्षा, प्रबन्धन, छात्रवृत्ति, प्रवेश आदि की उपयोगी जानकारी मिली। वहाँ हमने अपनी 5 – 6 पुस्तकें वरिष्ठ मैनेजर डरेन हेनसन को भेंट की तो वो गद्गद हो गए। लंच में थोड़ा सा वक़्त बचा कर हम ने वहीं मोल में से कुछ फल, चिप्स, चॉकलेट ड्रिंक्स आदि ख़रिदे। बहुत कुछ नए फल, मेवे, सब्जियाँ वहाँ देखीं। अब हम काफी ऊँचे रॉपवे से सेण्टोसा आइलैण्ड को देख रहे हैँ। एक आइलैण्ड से दूसरे आइलैण्ड का सफ़र बहुत अद्धभुत था। पूरा सिंगापुर, सागर, सेण्टोसा आइलैण्ड एक साथ देखा जा रहा था। नीचे बड़ेबड़े क्रूज वाले जहाज भी बड़ा मन मोह रहे थे। ऐसा अद्वितीय नजारा, जो पहले कभी देखा नहीं था। जिधर देखते बस प्रकृति का सौन्दर्य ही सौन्दर्य बिखरा पड़ा था। क्याक्या देखें, किसे कैमरे में कैद करें, कुछ समझ में नहीं रहा था। इस वक़्त अपना एक शैर सार्थक लगने लगा था
ख़ूबसूरत भी नज़ारे हैं बियाबानेजहाँ में
अपनी नज़रों को वही मंजर दिखाना चाहती हूँ
सेण्टोसा आइलैण्ड ज्योंज्यों करीब आता गया हरियाली से लदी धरती देख कर दंग रह गए। जब टॉयट्रेन से आइलैण्ड की सैर की तो लगा कि प्रकृति इतनी खूबसूरत भी हो सकती है, एकदम जन्नत का नज़ारा था सामने। ज़र्राज़र्रा सुषमा से लदा था। कभी कोर्इ कहता ......... अरे रे इधर देखो ....... कितना प्यारा दृश्य है ..... तो कभी दूसरा हमसफ़र कहता ........ इधर देखिए ..... वॉव ...... कितना प्यारा है यह सीन। इस आइलैण्ड के लिए तो 2 – 4 दिनों की यात्रा कम है। किसी शायर ने कश्मीर के लिए कहा था
अगर फ़िरदौस बररुज़मीनस्त
हमीनस्तौ, हमीनस्तौ, हमीनस्तौ
यानी ज़मीन पर कहीं जन्नत है तो यहीं है, यहीं है। सेण्टोसा आइलैण्ड के लिए हम यही कह सकते हैं।
बीचबीच में बीच आते गए, जहाँ कितने ही प्रकृतिप्रेमी जल क्रीड़ाऐं कर रहे थे। ये बीच किनारे भी बहुत हट कर थे, मन में आया कि यहीं उतर कर कुछ देर पानी से गुफ़्तगू कर लें। लेकिन ........? अब हम गए हैं मछलियों की दुनिया यानी अण्डर वाटर वर्ल्ड में जहाँ पानी में इठलाती मछलियाँ ही मछलियाँ सैंकड़ों प्रजातियों की बहुरंगी मछलियाँ। छोटी से छोटी मछली तो काफी विशाल मीन यहाँ देखी जा सकती है। पानी में इन की स्वाभाविक जल क्रीड़ाऐं देख कर दातों तले अँगुलियाँ दबाये बिना नहीं रह सके। वृत्ताकार में चल रास्ता बना हुआ था। चारों ओर से फ्लैशें चमकने लगीं। बहुत खूब सारा दृश्य देख कर एक दम यही चौपार्इ की पंक्ति याद गर्इ
गिरा अनयन, नयन बिनु बानी
गूँगें के गुड़ वाली स्थिति हो गर्इ थी। इस नज़ारे का हम दूसरी बार अवलोकन करने का लोभसँवरण नहीं कर पाए। बाहर कर कुछ देर सारा समूह मटरगश्ती करने लगा। राजस्थान पत्रिका के प्रबन्धक प्रवीण नाहटा साहब, भोपाल मीड़िया के आशीष जोशी जी, गुजरात के कृष्णकांत जी, राजस्थान के विजेता छात्र रामेश्वर जी, मध्य प्रदेश के छात्र अजीत कुमार, सिक्किम के अमित जी, कोलकाता की शाहीन जी से तो काफी आत्मीयता हो चुकी थी। हास्यविनोद, चुटकियाँ लेना, छेड़छाड़ करना,........ परस्पर चिढ़ाना ....... चलता रहता। अपनी बिटिया स्वप्निल की भी इन से खूब पटने लगी थी। परिवार जैसा माहौल हो गया था। जब भी नाहटा साहब से उन की कैप, जो उन्होंने पाँच डालर में खरीदी थी, माँगते तो कहते पाँच डालर लगेंगे...... जीवन में इन पलों को अनमोल कहा जा सकता हैं। समूह में सफर का आनन्द तो जुदा ही होता है ना ! चाहते हुए भी लौट कर आना पड़ा एवं भारत के राजदूत श्री रवि बाँगड़ साहब से मुलाकात हुर्इ। उन को भी हम ने अपनी एक पुस्तक भेंट की तो हर्षविभोर हो गए। हमारा पता पुस्तक पर देखा, अपना विजिटिंग कार्ड हमें दिया। अगर आप इसे आत्मश्लाघा मानें तो यह उक्ति याद आर्इ ...... विद्व जन सर्वत्र पूज्यते। वहाँ भी कर्इ फोटोग्राफ्स लिए गए।
अगले आधे दिन शहरभ्रमण हुआ एवं बाद में कुछ हमसफ़र जुरोंग बर्ड पार्क गए जहाँ 8,000 प्रजातियों के प्राणी हैं, पेंग्विन भी है तो विश्व का सबसे ऊँचा मानव निर्मित झरना भी। कुछ ग्लोसिटी तफ्रीह कर के आए। डिनर के बाद हम भी बर्फ पर फिसलने, खेलने में पीछे नहीं रहे। सब की रातें शॉपिंग माल में जागती रहतीं। हम लोगों का बस चलता तो सारा सिंगापुर ही खरीद लाते। क्याकुछ नहीं मिलता इस ज़रासे राष्ट्र में, हालाँकि ज्यादातर चीजें यहाँ आयातित ही होती हैं।
लौटते में तो सब की शरारतें और बढ़ने लगी थीं। करीब भी ज्यादा ही गए थे। पत्रकार बन्धु कब मानने वाले थे। प्लेन में भी स्नेप ले लिए, विडियोग्राफी भी कर डाली। केप्टिन से संवाद भी हुआ।
सारांशतः सिंगापुर अत्यल्प संसाधन होने के बावजूद अत्याधुनिक टेक्नोलोजी में अग्रणी है। क्या कुछ नहीं है वहाँ। के नागरिक भी काफी श्रमनिष्ठ, विनोदप्रिय, शिष्ट मिलनसार हैं। दुनिया में सब से कम अपराध होते हैं वहाँ। सब कुछ अनुशासित, स्वतःचलित, जहाँ देखो वहाँ एयर कण्डीशन, एक से एक भव्य शॉपिंग मॉल। साइन्स सेन्टर में स्कूली बच्चों से भी मिलने का अवसर मिला। सब के P.T. जूते थे, टार्इवार्इ किसी के नहीं बँधी थी। उन की पुस्तकें देखीं, इंग्लिश की थीं। वहाँ इंग्लिश ही माध्यम भाषा है। इस के अलावा मलय, चाइनी चलती है। वहाँ लड़कियाँ महिलाऐं सर्वत्र काम करती देखी जा सकती हैं। नागरिक बहुत स्मार्ट दिखार्इ दिए। जीप ठेला ही दिखार्इ दिया। स्वच्छता का यह आलम था कि टॉयलेट में खूशबू आती थी, वहीं नीचे फर्श पर ही सामान रख दिया करते थे हम। होटल में पीने का पानी तो बाथरुम में से ही पीना पड़ता है। सब जगह एकसा साफ़ पानी आता है। फिर कुछ इतना साफ़ कि रसोर्इ हो या टॉयलेट कोर्इ फर्क नहीं पड़ता। वहाँ सड़क पर छिड़कने या दुकानमकान धोने में पानी का दुरुपयोग कहीं देखने में नहीं आया।
बस इतना ही कि अलौकिक अद्भुत है सिंगापुर। दिलोंदिमाग पर छा गया है हमेशा के लिए। खुशकिस्मती से कुछ लम्हें जीवन को प्रमुदित करने आए एवं हमारी आगोश में कुछ अविस्मरणीय स्मृतियाँ छोड़ कर चले गए। अस्तु।
(कृष्णा कुमारी)


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