Thursday 6 August 2015


निबंध

बी पॉजिटिव


कृष्णा कुमारी




''बी पोजिटिव 'सुनने में जितना आसन हे ,जीने में उतना ही मुश्किल .वाकई जीवन को भरपूर आनंदके साथ जीने के लिए इस से चमत्कारी औए कोई मन्त्र है ही नहीं .यह अपने आप में मात्र दो शब्द नहीं हे अपितु सम्पूर्ण जीवन दर्शन हे .इस को जीवन में अपना लेने से जीवन में क्रातिकारी परिवर्तन संभव हे बात छोटी जरुर है लेकिन है बड़ी प्रभावी .देखा जाये तो जीने की कला ही ये ही हे .

'बी पोजिटिव 'होने में जरुरत है तो केवल द्रष्टिकोण बदलने की .जो इतना मुश्किल भी नहीं हे .मगर उतना आसान भी कहाँ .वेसे करना सिर्फ इतना है कि अपने विचारों को सकारात्मक दिशा देना हे .अधिकतर लोग नेगेटिव बातें सोचते हें ,ऐसे ही खयाल मन में लाते हें .भय , शक ,संदेह आदि भाव आत्म विश्वास की कमी को दर्शाते हैं .ऐसे भाव मूलत हमारे परिवेश की ही देन है .जरा सी कोई बात हो भी जाये तो तुरंत मन में ये ही आता है कि ...'कहीं ऐसा तो नहीं हो गया ....वैसा तो नहीं हो गया ....आदि आदि यानी नेगेटिव प्रतिक्रिया ही होती है .मान लीजिये हमारे किसी अपने को घर आने में विलम्ब हो गयाऔर इत्तिफ़ाक से फ़ोन भी नहीं लग रहा हो तो ...तुरंत ज़माने भर के नकारात्मक विचार हमारे मन में जायेगें .अरे भाई इस के कई कारण हो सकने हें ....जिन में निन्यानवे % सकारात्मक ही होते हें .लेकिन हम हें कि मानते ही नहीं .....ऐसी स्थिति में हम सकरत्मकता से भी काम ले सकते हें .और परिवेश में सकारात्मक उर्जा विकीर्ण कर सकते हें .हम सब जानते हें कि आदमी जेसा सोचता वैसा ही बनता हे ....वैसा ही हो या भी हे .बाबा शिवानन्द जी बार -बार एक ही बात दोहराते हें .....आप जो भी चाहते हें सिर्फ और सिर्फ वैसा ही सोचिये ...पूरी शिद्दत के साथ ...मै कहता हूँ सौ %वैसा ही होगा .क्यों कि जेसे ही कोई भाव मन में लाते हें भौतिक रूप से वह आकार  ले लेता हे .क्यों कि भाव के अनुरूप ही तरंगे वातावरण में विकीर्ण होती हे ..ये ब्रह्माण्ड का  नियम  हे .....वो ये भी कहते हें कि इस ब्रहमांड की उत्पति ही वाइब्रेशन से हुई हे '

अब आप ही बताइए सकारात्मक होने के लिए हमें और क्या चाहिए .
लेकिन इस के बावजूद आदमी परिवेश में नेगेतिव् एनर्जी ही प्रसारित कर रहा हे .ये तो संसार हें यहाँ अच्छा बुरा हमेशा से होता आया हे ....होता रहेगा .लेकिन इस का मतलब ये भी तो नहीं कि डर और भय में जिया जाये .याद रखिये जिस का मन निर्मल होता हे ,भाव पवित्र होता हें ,कर्म श्रेष्ठ होतें हें उस इन्सान का कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता .सकल प्रकृति हर कदम रक्षा कवच बन कर उसे सुरक्षा प्रदान कराती हे वेसे भी 'बी पोसिटिव 'होने से हमारा शारीरिक तंत्र भी मजबूत होता हे , कोई भी भाव या विचार सब से पहले भाव तंत्र को प्रभावित करते हें उस के बाद मन को और उस के बाद शारीर पर प्रभाव डालते हें अतः जेसी सोच होती हे वेसा ही तन और मन बन जाता हे .अधिकतर बीमारियाँ संवेगों से ही जन्म लेती हें शारीर पर तो बाद में प्रभाव डालती हें .ये बात मेडिकल विज्ञानं भी मान चूका हे .
'
थ्री इडियट 'फिल्म 'बी पोजिटिव 'बनाने पर ही आधारित हें .इसी प्रकार फिल्म में शाहरुख खान का एक डायलोग काफी चर्चित भी हुआ हे कि आदमी जो भी चीज पूरी शिद्दत के साथ चाहता हे .उसे पूरा करने में सारी कायनात जुट जाती हे .इस के साथ मैनें कई जगह ये बात पढ़ी भी हे सुनी भी हे
लेकिन जब पूरे ही कुए में भांग घुली हो तो आदमी करे भी तो क्या करे इसी के साथ न्यूज चैनल या प्रिंट मिडिया अधिकांशत नेगेटिव खबरें ही परोसते हैं रोज -रोज वो ही हिंसा ,झूठ ,फरेब ,अश्लीलता , बलात्कार वगैरह वगैरह। …… मेरा एक दोहा इसी बात पर याद रहा है -----

‘हिंसा ,छल ,अश्लीलता।,अनाचार व्यभिचार

सुबह -सुबह , घर -घर यही , बाँट रहे अखबार




इस तरह की खबरें मीडिया एक ही दिन में कई -कई बार दिखाता है बार -बार हाई -लाइट भी किया जाता है ,कि अमुख ने ये किया वो किया . अगर एक ने काई गलत काम किया भी तो सारी दुनिया में प्रचारित करने का आखिर ओचित्य क्या है ,. उधर पाठक दर्शक दिन भर ऐसी खबरों पर जम कर चर्चा करने से बाज नहीं आते। अब यदि गलत बातें ही देखी जाएँगी , सुनी जाएँगी ,.... तो फिर चेतन अवचेतन मन पर विपरीत असर होना ही है। ऐसे में हम एक खूबसूरत समाज की परिकल्पना कैसे कर सकते हैं। गौर तलब है कि सारा दोष मोडिया को भी नहीं दिया  जा सकता क्यों कि कंट्रोल देखने वाले के हाथ में होता है |उसे नहीं देखना है तो चेनल बदल सकता है |.मगर  क्या कीजै,अधिकतर मानसिकता ही बुरे को में रस लेने की बन गई है | इसी सन्दर्भ में। .... आचार्य भरत मुनि के नाट्य -शास्त्र के अनुसार।मंच पर नाटकों में दुःखांत दृश्य दिखाना वर्जित है। इसी प्रसंग में –‘अच्छे भावों को हमेशा पोषित करें , उन पर बल दें ,ऐसा करने से अच्छे भाव बार –बार आयेंगे ,जैसे –जैसे भाव शुद्ध होने लगते हैं , प्यार खुद –ब –खुद बदने लगता है ....’-ज्ञान वाणी ,राजस्थान पत्रिका -26जुलाई ,2015

हमारे अद्यात्म गुरु इसीलिए कहते हैं कि सुबह 9 -10 बजे तक अख़बार या टी. वी. मत देखिये। इस समय केवल अच्छी बातों का चिंतन -मनन कीजिये ,ताकि दिन भर सकारात्मक ऊर्जा से आदमी सम्पूरित रहें।

आज कल चारों तरफ ये ही शोर है कि बच्चे बिगड़ रहे हैं ,युवा दिग्भ्रमित हो रहे हैं ,मगर बच्चे ही क्यों ,समाज ही गलत दिशा की ओर अग्रसर हो रहा है। ऐसे में किसे दोष दीजियेगा। ....... हम सभी इस के लिए जिम्मेदार हैं। सारा परिवेश ही दोषी है। क्यों कि हर जानिब नकारात्मक ऊर्जा का संचरण हो रहा है। एक व्यक्ति का कार्य ,व्यवहार ,भाव -जगत ,विचार सम्पूर्ण वातावरण को। यहाँ तक कि पशु -पक्षियों ,जीव -जंतुओ,एवं इतर सभी प्राणियों पर प्रभाव डालते हैं। उस का एक सच -झूठ भी उस का नितांत अपना नहीं होता ,अपितु पूरे परिवेश को बनाते बिगाड़ता है। जैसी कि एक कहावत खूब प्रचलित है ....एक मछली सारे तालाब  को गन्दा कर देती है’’,इसे सत्य मान कर परस्पर व्यवहार किया जाता रहा है , मगर यह भी एक तरह का दुराद्रह मात्र है | वो 99 मचलियाँ क्यों नहीं देखी देती जो सतत पानी को साफ़ किये जा रही है |केवल गन्दगी को देखने का अर्थ है ,नकारत्मक सोच , जिस की कि आदत पड़ चुकी है  |आखिर  इतना  नेगेटिव दृष्टिकोण क्यों ...?मेरी समझ से परे है |काश ऐसा होतं तो आज हम सतयुग में जी रहे होते |’ एक व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा ,भाव धारा हजारों -हजार प्राणियों में इसी ऊर्जा को सृजित करती है,वहीँ नेगेटिव ऊर्जा इस के विपरीत ऊर्जा का संचार करती है। यदि हम खूबसूरत , प्यारी सी दुनिया चाहते हैं तो उस एक मात्र समाधान बी पॉज़िटिव होने से ही सम्भव है।

हम सब जानते हैं कि प्रेम से प्रेम ही उत्पन्न होता है ,घृणा से घृणा ही उपजती है तो द्वेष से द्वेष ही सकारात्मकता से सकारात्मक ऊर्जा पैदा होगी और नकारात्मक भावों से नकारात्मक तरंगे उत्पन्न होंगी, ये तय है। अब आप को क्या चुनना है शीघ्र तय कीजिये।




कृष्णा कुमारी




 

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