Saturday 4 July 2015


निबंध

 प्यार से पेश आइये बच्चों से

                                                            कृष्णा कुमारी

सृष्टि में दो प्रकार की उर्जा विद्यमान होती है. पहली सकारात्मक़ दूसरी नकारात्मक। मानव अपने विचारों. शब्दों.भावों के माध्यम से उर्जा का आदान प्रदान करते हैं।जैसी उर्जा वो सृजित करता है. सामने वाले व्यक्ति पर वैसा ही प्रभाव छोडता हैं।हम देखते भी हैं कि कुछ व्यक्ति कहते ही हमारी बात मान लेते हैं या बिना कहे ही समझ जाते हैं और कुछ पूरी बात सुनने के पहले ही इंकार कर देते हैं   यह हमारे द्वारा प्रदत्त उर्जा का ही परिणाम होता है। जो देते हैं वैसा ही मिलता है. सीधा सा गणित है यही सृष्टि का अटल नियम भी इसीलिए तो कहतें हैं कि ज्ञानी जनों की संगत में रहो और हमेशा सकारात्मकता से शराबोर रहो।

हमारे द्वारा बोला गया एक शब्द किसी को जीवन दे सकता है. दिशा परिवर्तित कर सकता है. तो किसी को गलत मार्ग पर भी ले जा सकता है. क्योंकि शब्द ब्रहृम स्वरूप हैं. उनमें अनन्त शक्ति है. हमने इस पर गंभीरता से इस बात पर विचार तो किया है मगर व्यवहार में नहीं लाते। कहीं भी. कभी भी. कुछ भी बोल देते हैं. फिर किसी के टोकने पर कहते हैं  कि अरे यार. वो तो मैं ने ऐसे ही कह दिया था …… ऐसे ही कैसे ……।जब कि श्री कृष्ण ने कहा है सौ बार सोचकर एक बार बोलो मगर हम इसके ठीक विपरीत व्यवहार करते हैं। हमें इल्म होना चाहिये कि हमारे द्वारा बोली गई एक एक ध्वनि ब्रहमाण्ड में स्थाई रूप से व्याप्त होती है। यानि शाश्वत हो जाती है। अब तो विज्ञान द्वारा ब्रहमाण्ड की ध्वनियों को पुनः सुना जा सके. इसके भी प्रयास चल रहे हैं। ताकि श्री कृष्ण के मुखारबिन्द से हम गीता ज्ञान सुन सकें। इस पर शोध कार्य जारी है। यह मैंने कुछ दिनों पूर्व राजस्थान पत्रिका में ही पढा है और प्राची प्रतिभामें भी डाँ0 विनीत विद्यार्थी ने ये ही लिखा है…… “ध्वनि विज्ञान एक स्वतंत्र विज्ञान है। जिस पर वर्तमान समय में कई देशों में शोध कार्य चल रहेहैं । भारत में ही नहीं वरन् फ्रांस. अमेरिका. नार्वे. आस्ट्रेलिया. इग्लैण्ड जैसे देशों में ध्वनि पर व्यापक शोध कार्य हो रहे हैं। वैज्ञानिक प्रयासरत हैं और ऐसे यंत्र के निर्माण का दावा भी कर रहे हैं जिससें भगवान श्री कृष्ण का गीता उपदेश. राम. ईसा. विक्रमादित्य. अकबर. मरियम. सीजर आदि की वाणी को पकडकर सुना जा सके कहने का तात्पर्य है कि हम कुछ भीका नहीं अपितु सारगर्मित शब्दों का ही प्रयोग करें। कम से कम बच्चों के मुआमलें में तो। क्योंकि बच्चों के कोमल मन पर एर्कएक शब्द. घटना बहुत जल्द चिर प्रभाव छोडती हैं। सब कुछ उसके अवचेतन मन में इकट्टा होता जाता है। लेकिन घर में. समाज में. विद्यालय में अकसर बच्चों से कहा जाता है तुम कुछ भी नहीं कर सकते” . “तुम किसी काम के नहीं हो”. “तुम निरे बेवकुफ हो”. “तुम एक काम भी ठीक से नही कर सकते”. “तुम तो गघे हो”. “तुम्हारे दिमाग में तो गोबर या भूसा भरा हुआ है”. “देखो तुम्हारे भाई या बहन कितने काबिल हैआदि आदि। वाह भई. इतनी नेगेटिव एनर्जी बच्चों मे भरकर हम क्या चाहते हैं। यह सब सुनकर क्या बालक कुछ करने लायक रहेगा. किसी काम का बचेगा. नहीं. कदापि नहीं। कहते है कि एक झूठ को भी बार –बार बोला जाये तो वह सच लगने लगता है। तब नकारात्मक शब्दों का दोहराव आलम्बन को कहीं का छोडेगा. नहींना हर बार नहीं……नहीं…… सुनते सुनते तो समर्थ व्यक्ति भी. चाहते हुए भी नकारा बन सकता है। क्योंकि उसकी सकारात्मक उर्जा शनैः शनैः नेगेटिव एनर्जी में बदलने लगती है। सुनी गई एक एक ध्वनि उसकी हर कोशिका को प्रभावित करती है. अध्यात्म की दृष्टि से शनैः शनैः उसकी मानसिक्ता वैसी ही होने लगती है. एक समय बाद यह उसके संस्कार बन जाते है।

गुणीजन. हमारे बुजुर्ग तो यहाँ तक कहते हैं कि इन्कारभी सकारात्मक तरीके से करना चाहिये नेगेटिव शब्दों का प्रयोग अच्छे खासे व्यक्ति का जीवन बर्बाद कर देता है।मसलन. किसी बालक से बार्रबार कहा जाए कि तुम तो निरे बेवकूफ होॐ तो एक एक दिन वह मान ही लेगा कि वह वाकई में बेवकूफ है क्योंकि सभी व्यक्ति उसे यही मानते हैं कहते भी हैं। बालक की हर कोशिका इस बात को स्वीकार कर चुकी होती है। नकारात्मक उर्जा उन पर हावी हो चुकी होती है। जबकि सामाजिक नैतिक मान्यता भी यही है कि मूर्ख को मूर्ख. लंगडे. को लंगड़ा कभी नहीं कहना चाहिये। बात यहीं खत्म नहीं होती अपितु उपरोक्त शब्दों के प्रयोगकर्ता पर भी इस बात का नेगेटिव प्रभाव पडता है। हमारे द्वारा उच्चारित शब्दों का पहले तो हम पर ही असर पडे.गा. जाहिर है यह भी ध्यातन्य है कि बेवकूफ या नकारा व्यक्ति से भी अगर यह कहा जाए कि तुम तो बहुत बुद्विमान हो. कर्मठ हो. यकीन मानिये. उसमें जादुई शक्ति का संचार होने लगेगा और जल्द ही वह बुद्विमान कार्मशील बन पाएगा। एक दिन वह बहुत कुछ कर जायेगा क्योंकि सकारात्मक उर्जा के संचार से वह अपनी तरफ से श्रेष्ठ से श्रेष्ठ प्रयास करेगा ।थोड़ी सी भी उपलब्धि उसे खुशी से भर देगी। उसमें असीम उत्साह का संचार होगा और उत्साह से बड़ी कोई शक्ति अखिल सृष्टि  में हो

ही नहीं सकती .

इस प्रसंग का कड़वा सच तो यह है कि अमूमन. आदमी कहने के पहले कुछ भी नहीं सोचते। बस जो मुंह में आया बोल दिया। उन्हें इस बात का इल्म तक नहीं होता कि वह जो कह रहे है. कुछ भी ग़लत बोलकर किसी की भी जिन्दगी को बर्बादी की राह पर ढकेल देते हैं। अतः बड़ो को चाहिये कि वह हमेशा. हर हाल में सकारात्मक विचारों का ही प्रयोग करें। बल्कि उनकी नज़र में जो निठल्ले हैं उन से भी यही कहे कि You are creater’ इन दिनों संस्कार चैनल पर शिवयोग का कार्यक्रम प्रसारित होता है. उसमें परम् श्रद्धेय शिवानंद जी योगी बार्रबार एक ही बात दोहराते हैं कि You are creater ”. “तुम अनंत हो”. “तुममें अनंत की शक्ति है”. “अहम् ब्रहनास्मिंआदि आदि। आगे कहते है कि तुम चाहते क्या हो”. जो तुम चाहते हो उसे हर हाल में प्राप्त कर सकते हा. बशर्ते है कि तुम्हारे काम एवं भाव पवित्र होने चाहिये और स्वयं पर सम्पूर्ण विश्वास और आस्था होनी चाहिये।इसी संदर्भ में ईसा ने कहा है……

नन्हों में से एक को भी तुच्छ समझनासंत मस्ती 18 :24

कुरआन शरीफ में भी उल्लेखित है……

बच्चों के मध्य न्यायपूर्वक और समान व्यवहार करना चाहिए।

बच्चों से अच्छा व्यवहार करो. उनकी कमियों को नजर अन्दाज करते हुये उन्हें सही शिक्षा दें।- ईसा


पत्रिका  8.6.2014

जाहिर है. हर व्यक्ति ब्रह्म् स्वरूप है. अनंत शक्ति से सम्पन्न है लेकिन अज्ञानतावश उसे इस बात का अहसास नहीं हो पाता है और हमें ऐसे व्यक्ति को यही अनुभूति तो करवानी है। अतः सभी व्यक्तियों को ऐसे नकारात्मक विचारों. शब्दों. उर्जा से बचना चाहिये। यदि सकारात्मकता को नहीं भी अपना सकते तो कम से कम नकारात्मकता से तो बचें। बच्चों को उत्साह नहीं दे सकते तो कम से कम हीन भावना तो उन में नहीं भरें। एक बार हीन भावना के भर जाने के बाद उस से उभरने में बरसों लग जाते हैं और कभी कभी तो आदमी इस से उभर ही नहीं पाता।

तो जाहिर है कि यथा सम्भव हमें इन बातों से बचने की कोशिश करनी चाहिये। मगर यह इतना आसान भी नहीं है। यदि कोई बालक कक्षा में उदण्डता करता हो. पढ़ता नहीं हो. हर रोज स्कूल नहीं आता हो. गृह कार्य भी नहीं करता हो. ऐसे में शिक्षक मारने. पीटने. डांटने के बजाय यह कहे कि तुम अच्छे बच्चे हा. रोज स्कूल सकते हो’. ‘तुम पढ़ भी सकते हो’. ‘थोड़ी सी कोशिश करो तो गृहकार्य भी कर सकते होे क्या ऐसा करना संभव हो सकता है. जी बिलकुल नहीं……पहला उत्तर ये ही होगा. मगर यह काम जरा मुश्किल ज़रूर है लेकिन असम्भव कदापि नहीं। यह बहुत साहसिक कदम है। सामने सारी विपरीत परिस्थितियां   हों और ऐसे में सकारात्मक प्रतिक्रिया

इस बात पर कुछ दिन पहले फेस बुकपर पढ़. हुआ एक सूत्र याद रहा है कि हराना बहुत आसान है. मगर किसी को जीताना उतना ही मुश्क्लि। वाकई झल्लाना बहुत सरल है. मगर प्यार सें समझाना…… फिर भी संभावनायें तो हर क्षेत्र में होती हैं। स्मरण रहे कि जिसको हम एक दम नकारा. बुद्धु समझते हैं वो ही शख्स एक दिन ऐसा कार्य कर गुजरे कि दुनिया देखती रह जाये। क्योंकि प्रकृति हर व्यक्ति को एक कमी. तो एक खूबी अवश्य प्रदान करती है। अतः व्यक्ति चाहे तो सब कुछ कर सकता है. उसमें असीम उर्जा निहित होती है। वैसे भी हर आदमी. हर काम तो नहीं कर सकता। जिसके लिए यह बना है वही काम बहतरीन तरीके से कर सकता है। अपनी रूचि का काम हर कोई बहुत अच्छा कर लेता है।

वैसे भी ईश्वर ने यह अधिकार किसी को भी नहीं दिया है कि वह दूसरे व्यक्ति के लिए किसी भी संदर्भ में निर्णायक बनें कम से कम कुछ भी उलर्टासीधा. गलर्तसलत बोलकर किसी भी शख्स की जिन्दगी को बर्बाद करने का तो बिलकुल भी नहीं। और फिर यह भी तो जरूरी नहीं कि दूसरों को परखने का हमारा नजरिया सही ही हो। ग़लत भी हो सकता है। दुनिया में कोई पारंगत नहीं होता है। इसलिये कहा भी गया है कि निर्णायक नहीं. दृष्टा बनों।सामने वाले से हम जो चाहते हैं वैसी उर्जा उस की ओर प्रवाहित करें। ताँकि उस के अन्दर जाकर उस की मनः स्थिति को बदलने में सहायक बन सके।अस्तु।



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