लो चाँद के आगोश से निकल रही हे चांदनी
बे सब्र -सी जमीं पे क्यूँ टहल रही हे चांदनी
कब तक छुपेगा हा ले -दिल ये हो ही जायगा अयाँ
क्यूँ बात ,बात -बात में बदल रही हे चांदनी
कब तक छुपेगा हा ले -दिल ये हो ही जायगा अयाँ
क्यूँ बात ,बात -बात में बदल रही हे चांदनी
"लो चाँद के आगोश से निकल रही हे चांदनी
ReplyDeleteबे सब्र -सी जमीं पे क्यूँ टहल रही हे चांदनी"
वाह वाह
shukriya rakesh ji :)
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